पंचतंत्र की कहानी - शेर और चूहा



एक घने जंगल में कड़क सिंह नाम का एक खूंखार शेर रहता था। उस शेर से जंगल के सारे जानवर थरथर कांपते थे। एक दिन वह गहरी नींद में सोया हुआ था। वह जहां सोया था वहां चूहे का बिल था। शेर के जोरदार खर्राटों से घबराया हुआ चूहा अपने बिल से बाहर आता है। पहले तो वह कड़क सिंह को देखकर थोडा डरता है लेकिन फिर उसे एक शरारत सूझती है। वह कड़क सिंह के साथ थोड़ी मस्ती करने लगता है। कड़क सिंह के नींद में होने पर वह उसका फायदा उठाता है। फिर वह उसके ऊपर कूदने लगता है। एक बार तो कड़क सिंह उसे अपनी पूँछ से हटा देता है लेकिन चूहा इतना शरारती होता है कि वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आता।

थोड़ी ही देर में कड़क सिंह की आँख खुल जाती है। अपने पास चूहे को उछलकूद करते हुए देख कड़क सिंह को बहुत गुस्सा आता है। वह चूहे को अपने पंजे में पकड़ लेता है और उससे दहाड़ते हुए कहता है, "बदमाश चूहे - तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे पास उछलकूद करने की? अब मैं तुझे नहीं छोडूंगा।"
  
कड़क सिंह की बात सुनकर चूहा बहुत घबरा जाता है। डर के मारे उसके पसीने छुटने लगते हैं। वह कांपती हुई आवाज में कड़क सिंह को बोलता है, "आपसे तो जंगल का हर जानवर डरता है। आप इस जंगल के राजा हैं। मुझे पागल समझ कर ही माफ कर दीजिये। मुझ जैसे जानवर को मारकर आपकी कौनसा शान बढेगी? बल्कि सब यही कहेंगे कि कड़क सिंह ने एक छोटे से चूहे को उसकी गलती के लिए मार डाला।"

चूहे की बात को सुनकर कड़क सिंह थोड़ा सोचने लगता है और गर्दन हिला देता है। चूहा आगे कहता है, "मेरी बात सुनिए महाराज, अगर आप मुझे छोड़ देंगे तो जीवन में कभी न कभी मैं आपकी सहायता जरूर करूंगा।"

कड़क सिंह चूहे की ये बात सुनकर ठहाके मार कर हंसता है और फिर चूहे को घूरते हुए बोलता है, "तुम्हारे जैसा पिद्दी चूहा मेरी क्या मदद करेगा? तुम्हारी बात सुनकर मुझे इतनी हंसी आ रही है, जितनी मुझे जीवन में कभी नहीं आई।"

एक गहरी सांस लेने के बाद कड़क सिंह बोलता है, "ख़ैर मैं तुम्हे छोड़ता हूँ। आज तुमने मुझे बहुत हंसाया है। इसका इनाम तुम्हारी ज़िन्दगी है।" यह कह्कर वह चूहे को छोड़ देता है। चूहा कड़क सिंह के पंजो से छुटकर बड़ी तेजी से भाग जाता है।

कई दिनों के बाद उस जंगल में कुछ शिकारी शेर को पकड़ने के लिए आते हैं। वह शेर को पकड़ने के लिए एक जाल बिछाते हैं। कड़क सिंह उसी रास्ते से गुजर रहा होता है जिस रास्ते पर शिकारियों ने जाल बिछाया होता है। वह जाल में फंस जाता है और फिर जोर जोर से मदद के लिए चिल्लाता है। 

चूहा कड़क सिंह की पुकार सुन कर दौड़ा-दौड़ा उसके पास जाता है और कहता है, "महाराज - आप परेशान ना हों। मैं अभी अपने नुकीले और तेज दांतों से इस जाल को कुतर देता हूँ।" यह बोलकर चूहा अपने दांतों से कड़क सिंह का जाल कुतरने लगता है। कुछ ही देर में कड़क सिंह जाल से मुक्त हो जाता है। चूहा कड़क सिंह से बोलता है, "उस दिन मैंने आपसे कहा था ना महाराज कि वक़्त पड़ने पर मैं आपकी सहायता करूंगा?! पर आप मुझ पर हंस रहे थे। कभी-कभी छोटा जीव भी वक़्त पड़ने पर बहुत काम आ सकता है।"

कड़क सिंह यह सुनकर जवाब देता है, "वाह दोस्त! आज से तुम मेरे ख़ास मित्र हो। तुमने मुझे आज बहुत बड़ी सीख दी है।"

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